उत्तराखंड कुणिंद राजवंश (uttrakhand kunind rajvansh)

उत्तराखंड कुणिंद राजवंश

प्रमुख इतिहासकारों का मानना यह है कि कुणिंद राजवंश उत्तराखंड पर राज करने वाली पहली राजनीतिक शक्ति थी । (uttrakhand kunind rajvansh) रामायण तथा महाभारत से लेकर अष्टाध्यायी तक हमे इनके साक्ष्य प्राप्त होते है उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादातर गढ़वाल क्षेत्र में लगभग 1000 ईसा पूर्व० से तीसरी चौथी ई० तक इनका शासन रहा होगा ।

प्राचीन कुणिंद काल के साक्ष्य हमे महाभारत के अभापर्व, विराटपर्व, वनपर्व, भीष्मपर्व तथा रामायण के किष्किंधाकांड और साथ ही विष्णु पुराण और ब्रह्मपुराण आदि से प्राप्त हुए है । वही मध्यवर्ति कुणिंद काल के साक्ष्य हमे पाणिनि के अष्टाध्यायी तथा चाणक्य के अर्थशास्त्र से भी प्राप्त हुए है ।

देहरादून के पास यमुना और टॉस नदियों के संगम पर स्थित कालसी नामक स्थान से प्राप्त अशोक कालीन अभिलेख में इस क्षेत्र के लिए अपरांत शब्द प्रयुक्त किया गया है तथा यहा के निवासियों के लिए पुलिंद शब्द का प्रयोग किया है । साथ ही इतिहासकारों का मानना है कि प्रारम्भ में कुणिंद मौर्यो के अधीन थे ।

अमोघभूति कुणिंद राजवंश का सबसे शक्तिशाली शासक था । इन्होंने एक अलग अल्पकालीन राज्य की स्थापना की थी । इनकी रजत एवं ताम्र मुद्राएं पश्चिम में व्यास से लेकर अलकनंदा तक तथा दक्षिण में सुनेत तथा बेहत तक प्राप्त हुई है । इन मुद्राओं के लेख ब्राह्मी तथा खरोष्टि लिपि में लिखा गया है इन मुद्राओ के अग्र भाग पद देवी तथा मृग का अंकन तथा प्राकृत में “राज्ञ: कुणिंदस अमोहभूति महरजस” अंकित है ।

कुणिंदो की प्रारंभिक राजधानी कालकूट (कालसी) थी इसके बाद में श्रीनगर पौड़ी स्थानांतरित किया गया । इस वंश का सबसे प्रतापी शासक अमोघभूति था इसने महाराज की उपाधि धारण की । कुणिंदो के आराध्य देव भगवान शिव थे ।

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कुणिंद राजवंश की मुद्राएं

कुणिंदो की मुद्राओं को तीन भागों में बाटा गया है ।

अमोघभूति प्रकार की मुद्राएं

अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राएं

चत्रेश्वर या अनाम प्रकार की मुद्राएं

अमोघभूति प्रकार की मुद्राओ में अमोघभूति का नाम उल्लेखित है तथा स्वस्तिक का चिह्न बनाया गया है । ये तांबे तथा रजत दोनो प्रकार की है ।

अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राएं केवल पर्वतीय क्षेत्रों से प्राप्त हुई है इन मुद्राओ पर शिवदत्त, शिवपालित तथा हरिदत्त नामक तीन शासकों का उल्लेख है । ये मुद्राएं अधिकांशतः अल्मोड़ा तथा कत्यूर घाटी से प्राप्त हुई है । अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राओ से 8 कुणिंद राजाओ का ज्ञान होता है ।

चत्रेश्वर प्रकार की मुद्राएं मुख्य रूप से द्वाराहाट क्षेत्र से प्राप्त हुई है । इन पर त्रिशूल धारी शिव का चित्र अंकित है इसलिए इन्हें शिव प्रकार की मुद्राए भी कहते है । चत्रेश्वर प्रकार की मुद्राओ में किसी शासक के नाम का उल्लेख नही है इसलिए इन्हें अनाम प्रकार की मुद्राएं भी कहा जाता है ।

अमोघभूति की मृत्यु के बाद शकों ने इनके मैदानी प्रदेशों पर अधिकार कर लिया । कुमाऊँ क्षेत्र में शक संवत का प्रचलन तथा सूर्य मूर्तियों एवं मन्दिरो की उपस्थिति शको के अधिकार की पुष्टि करते है । अल्मोड़ा के कोसी के पास स्थित कटारमल सूर्य मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है ।

कुणिंद राजवंश से सम्बंधित महत्वपूर्ण quiz

1: उत्तराखंड पर शासन करने वाली प्रथम राजनीतिक शक्ति थी ।

कुणिंद वंश ।

2: किस अभिलेख से यह पुष्टि होती है कि कुणिंद मौर्यो के अधीन थे ।

कालसी अभिलेख ।

3: अशोक कालीन अभिलेख में इस क्षेत्र के लिए किस शब्द का प्रयोग किया है ।

अपरांत शब्द का ।

4: कुणिंद वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था ।

अमोघभूति ।

5: अष्टाध्यायी के लेखक कौन है ।

पाणिनि ।

6: अमोघभूति की मृत्यु के बाद इस क्षेत्र पर किसका अधिकार हुआ था ।

शको का ।

7: अशोक कालीन शिलालेख राज्य के किस स्थान से मिला है ।

कालसी देहरादून |

8: कुणिंद राजवंश के आराध्य देवता थे ।

भगवान शिव ।

9: कुणिंद राजवंश की प्रमुख मुद्राएं कितने प्रकार की थी ।

तीन (अमोघभूति, अल्मोड़ा, चत्रेश्वर)

10: अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राओ में किसका नाम उल्लेखित है ।

शिवदत्त हरिदत्त तथा शिवपालित |