उत्तराखंड आद्यऐतिहासिक काल ( Uttarakhand GK in hindi)

उत्तराखंड आद्यऐतिहासिक काल

आद्यऐतिहासिक काल को पौराणिक काल भी कहा जाता है | Uttarakhand GK in hindi इस काल के हमे पुरातात्विक साक्ष्य भी मिलते है तथा साहित्यिक साक्ष्य भी मिलते है प्रागेतिहासिक काल में हमने पड़ा था कि मनुष्य शैलो, गुफाओं आदि में निवास करता था लेकिन आद्यऐतिहासिक काल में मनुष्य गुफाओं से निकल कर अब बस्तियां और नगर बना कर रहने लगा और इनलोगो ने आपस में बातचीत शुरू की और एक भाषा की शुरूवात हुई जिसे लिपि के रूप में लिखना शुरू किया गया लेकिन अभी तक अधिकांश भाषा या लिपि को ना तो कोई पढ़ पाया है ना ही समझ पाया है ।

इस काल का विस्तार चतुर्थ शताब्दी से ऐतिहासिक काल तक माना जाता है इस युग के लोगो लौह ताम्र धातुओं तथा कृषि पशुपालन और साथ ही ग्रामीण नगरीय सभ्यता से परिचित होने के साक्ष्य मिलते है ।

उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख हमे ऋग्वेद से प्राप्त होता है जिसमे इस क्षेत्र को देवभूमि पूर्ण भूमि तथा पवित्र क्षेत्र कहा गया है वेदों के अलावा इसका उल्लेख धार्मिक ग्रन्थों जैसे रामायण माहाभारत आदि से भी प्राप्त होता है । ऐतरेव ब्राह्मण में इस क्षेत्र कर लिए उत्तर कुरु शब्द का प्रयोग किया गया है ।

स्कन्दपुराण में उत्तराखंड को मानसखण्ड तथा केदारखण्ड कहा गया है जिसमे मायाक्षेत्र (हरिद्वार) से हिमालय तक के क्षेत्र को केदारखण्ड (गढ़वाल क्षेत्र) तथा नंदा देवी पर्वत से कालागिरी तक के क्षेत्र को मानसखण्ड (कुमाऊँ क्षेत्र) कहा गया है ।

महाभारत में कुल 18 पर्व है जिसमे इस क्षेत्र को स्वर्ग भूमि, तपोभूमि, बदरिकाश्रम (गढ़वाल क्षेत्र) नामो से जाना जाता है । बौद्ध ग्रन्थ के पालिभाषा में उत्तराखंड क्षेत्र के लिए हिमवंत शब्द का प्रयोग किया गया है ।

ह्वेनसांग भारत में 629 ईo में आया था ह्वेनसांग के इस यात्रा व्रतांत को सी-यू-की नाम दिया गया सी-यू-की में हमे 138 देशों का उल्लेख किया गया है । ह्वेनसांग भारत मे आने के बाद 634 ईo में हरिद्वार में आया था उसने यहाँ के क्षेत्र को मो-यू-लो नाम दिया ह्वेनसांग ने गंगा नदी को भी महाभद्रा के नाम से पुकारा था ।

Uttarakhand one liner Gk in hindi 

गढ़वाल क्षेत्र आद्यऐतिहासिक काल

गढ़वाल क्षेत्र को महाभारत एवं पुराणों में स्वर्ग भूमि तपोभूमि तथा बद्रिकाश्रम क्षेत्र तथा केदारखण्ड आदि नामो से जाना जाता था । लेकिन कालांतर में यहा के 52 गढो को पवार शासक अजयपाल द्वारा विजित कर लेने के कारण यहक्षेत्र गढ़वाल नाम से प्रयुक्त होने लगा । ऋग्वेद के अनुसार इस क्षेत्र के असुर राजा शम्बर के 100 गढो को देवराज इंद्र और सुदास ने नष्ट कर दिया था ।

ब्रह्मा के मानस पुत्रो दक्ष, पुलस्य, अत्रि, मरीचि, पुलह तथा ऋतु का निवास स्थान भी गढ़वाल ही था । ऐसा माना जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र के देवप्रयाग की सितोनस्यु पट्टी से सीता माता जी पृथ्वी में समाए थे । इसी कारण यहाँ प्रत्येक वर्ष मनसार में मेला लगता है । टिहरी गढ़वाल में लक्ष्मण जी ने जिस स्थान पर तपस्या की थी उसे तपोवन भूमि के नाम से जाना जाता है । साथ ही रामायणकालीन बाणासुर का भी राज्य इसी गढ़वाल क्षेत्र में था और इनकी राजधानी जोशीमठ में थी । महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य अभिज्ञान शाकुन्तलम की रचना मालिनी नदी के तट पर स्थित इसी कण्वाश्रम में ही कि थी । वर्तमान में इसे चौकाघाट कहा जाता है ।

कुमाऊँ क्षेत्र आद्यऐतिहासिक काल

स्कन्दपुराण में कुमाऊँ क्षेत्र को मानसखण्ड कहा गया है । प्रारंभ में केवल चंपावत के आस पास के क्षेत्रों को ही कुमाऊँ कहा जाता था लेकिन आघे चलकर वर्तमान अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ बागेश्वर, उधम सिंह नगर क्षेत्र को कुमाऊँ कहा जाता है । ब्रह्मा एवम वायुपुराण के अनुसार यहां किरात, किन्नर, यक्ष, गन्धर्व तथा नाग आदि जातियां निवास करती थी । जाखन देवी मंदिर जो कि अल्मोड़ा में स्थित है इसका अस्तित्व अत्यंत प्राचीन काल मे इस क्षेत्र में यक्षों के निवास करने की पुस्टि करता है ।

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